हर चौराहे पर मनाता हु....
जशन मेरे वतन के आझादी का...
पर ज़श्न का ओ जुलुस...
आता ही नाही मेरे भूखे चौराहे पे....
सोचता हु... बेच दू खुद को भी...
उन तिन रंगो के साथ...
पर कोई पेहचान ही नही पता...
मेरे दुःख के रंग उस तिरंगे के साथ....
ऐ आझादी का जश्न मानाने वालो...
कभी आया करो मरे उस चौराहे पे...
जहा जब तुम मनाते हो जश्न आझादी का...
और मैं जुटा रहता हूँ... भूख मिटाने की कोशिशो में....
-Ek प्रियकर.
इथे कोणत्याही प्रकारे राष्ट्र ध्वज अथवा
कोणाचाही अपमान करण्याचा हेतु नाही...
पहिलेली वेदनादायक परिस्थिति
मांडण्याचा एक छोटासा प्रयत्न... _/\_
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